इतनी आसानी से उससे
मुलाकात नहीं होती
ऊपर, मज़हब से
तेरी पेह्चान नहीं
होती
जब आये तो
सफ़ेद थे सारे,
कही हरा तो
कही केसरी रंग
हमने भर दिए
तेरे कर्मो से लोग
तुझे जाने गे,
लिबास से तेरी
पेह्चान नहीं होती
मखमली लिहाफ को हटा
के तो देख
खुसबू आएगी, मिटटी को
बदन पर लगा
के तो देख
सिर्फ महंगे इत्र्र से
तेरी पेह्चान नहीं
होती
पैदा होते ही
नाम दे दिया
तुझे
किसी ने 'दीप
' तो किसी ने
अली कहा तुझे
लावारिस मरा तो
क्या कहेगा तुझे
जमाना
सफ़ेद कफ़न में
किसी की पेह्चान
नहीं होती
----------------------------------------------------------------
हरदीप
No comments:
Post a Comment