Wednesday, July 31, 2013

ख्याल-ll

खूगर हो गया मैं तनहाइयों का  (खूगर = Habituated)
अब अंजुमन की बात रेहने दे    (अंजुमन = Meeting)

कहीं कामयाबी बदल न दे मुझे
छोड़.... मुझे नाकाम रेहने दे

ये शहर बेलगाम बड़ता है 'दीप'
खुदा... उससे जुड़ा कोई तो मक़ाम रेहने दे   (मक़ाम = Place)

अपने ख्यालों के लिए वो मशहूर है
मुझे इरादों के लिए बदनाम रेहने दे

मर कर मिट्टी हो गया..... 'दीप'
पत्थर पर लिखा नाम तो रेहने दे
------------------------------------------
हरदीप




Saturday, July 27, 2013

दास्तान

हमसे न पूछ मौसम का हाल
अब तो बूंदे भी आग लगाती है

तुझ से बिछड़े तो ज़माना हो गया
कमबख्त सासें अब भी साथ निभाती है

कुछ तो वजह होगी बेवफाई की 'दीप'
नज़रे आज भी शर्म से झुक जाती है

क्या सुनाऊँ तुझे दास्तान-ऐ-इश्क
उसके ख़याल से आह निकल जाती है

मुश्किल डगर है संभल ज़रा ऐ 'दीप'
आसान रास्तों पर मंजिल मिल ही जाती ही
------------------------------------------------------
हरदीप

Wednesday, July 24, 2013

शब्द

जो वीर है,  धीर है
जो अचल है, अटल है
जो प्रचंड है, अखंड है
जो प्रबल है, सफल है
जो विशेष है, प्रत्यक्ष है
जो विचार है, विमर्श है
जो प्यार है, आधार है 
जो मधुर है, मशहूर है
जो गीत है, संगीत है
जो आस है, प्रकाश है
जो नम्र है, विनम्र है
जो शांत है, प्रशांत है
जो नीत है, विनीत है
जो सखा है, मीत है
वही तो मनुष्य है .......
वही तो मनुष्य है .....
---------------------------
हरदीप

Tuesday, July 23, 2013

कहानी-2

माँ.... सुनाओ फिर वो  कहानी
जब चाँद में रहती थी एक बुढ़िया
...जिसे लोग केहते थे नानी   

जब पेड़ो पर होती थी मछलियां
और हवा में शीतल बेहता पानी
माँ.... सुनाओ फिर वो  कहानी

वो कागज की बनी नाव,
और आँगन में ठ्हेरा पानी
माँ.... सुनाओ फिर वो  कहानी

जहाँ गुड्डा होता था राजा
..और गुड़िया एक रानी
माँ.... सुनाओ फिर वो  कहानी

....कब आती थी नई धुप
कब  जाती थी शाम पुरानी
माँ.... सुनाओ फिर वो  कहानी

....जब जग सारा घूम के
घर आती थी चिड़ियाँ सयानी
माँ.... सुनाओ फिर वो  कहानी

.......बंद डब्बे में वो यादें
वो मिट्टी में दबी निशानी
माँ.... सुनाओ फिर वो  कहानी
-------------------------------------------
हरदीप

Sunday, July 21, 2013

हुस्न

यूँ फुर्सत से खुदा ने तुझे तराशा है
के फिर उसने बुत बनाने छोड़ दिए

ये झुकी नज़रे और नूर-ऐ-हुस्न तेरा
वाइज़ ने उसूल सारे तोड़ दिए  (वाइज़ = Preacher)

कोई गम न रहा तुझे देख कर
सिक्वे...... नए-पुराने सारे छोड़ दिए

बंद आँखों में सिर्फ तस्वीर तेरी
ख़्वाब सारे, सिरहाने छोड़ दिए   (सिरहाने = Pillow)


जब.... गिलाफ़ कोई न था बदन पर (गिलाफ़ = Some sort of cover)
..............और रखा कदम पानी में
तब ....लहरों ने किनारे सारे छोड़ दिए
-----------------------------------------------
हरदीप



Thursday, July 18, 2013

सफ़र

तुने गर छोड़ दिया, तो कहाँ जाऊँगा
तेरे दर पर जिया,  तेरे दर पर मर जाऊँगा

ये कैसी बेकरारी जाने की ऐ 'दीप'
बात दो पल की है, पल दो पल में जल जाऊँगा

तेरे-मेरे प्यार के किस्से अभी भी उन गलियों में
तुने छोड़ दी वो गलियाँ, में शहर छोड़ जाऊँगा

दोज़ख की आग है ये दुनिया अब मेरे लिए  (दोज़ख = hell)
मैं पल, हर पल, ... बस.... जलता जाऊँगा


Below lines are very deep and the reality of life, at least from my perspective, journey starts from one shoulder and ends on few shoulders.

ये  सफ़र मेरा कंधे से कांधो तक ......
यार का कंधा छूटा, तो यारों के कांधो पर जाऊँगा 
----------------------------------------------------
हरदीप

Tuesday, July 16, 2013

मुस्किल

अपने गम को जिंदा रखना कितना मुस्किल है
ज़ख्मो को छुपाए रखना कितना मुस्किल है

तूफ़ान पैदा करना दुनिया की फितरत है
उम्मीद का दिया जलाये रखना कितना मुस्किल है

तू कभी मिले अंजुमन में और आँखों से बात हो जाए
ऐसी ख्वाहिश को दबाए रखना कितना मुस्किल है

....will add few more lines later on.
Hardeep

Sunday, July 14, 2013

ख़ामोशी

ख़ामोशी मेरी जुबा होगी
जब आशिकी आँखों से बया होगी
फ़ना हो जाऊँगा तुझ पर
जब इशारों में तेरी 'हा' होगी

हर तरफ चलती कहानियां
कही अंत तो कहीं सुरुआत होगी
जो घर से कभी निकला नहीं
उसे जहाँ की क्या मालूमात होगी

यु तो हज़ारो लफ्ज़ है लुगत में  ( लुगत = Dictionary)
...................पर क्या कहूँगा 
......जब उससे मुलाक़ात होगी

ज़िन्दगी में मोड़ कई है
हर कदम संभल कर चलना
'दीप'....लोग तैयार बेठे है
.....गर तेज़ रफ़्तार होगी
---------------------------------
हरदीप

Saturday, July 13, 2013

हालात

वाकिफ था मेरी हकीकत से जो
वो मेरे हालात पूछ रहा है
ख़ामोश था सदियों से जो
अब वो मुज़्तर हो रहा है     (मुज़्तर = Restless)

अब क्या करेगा ज़माना
और कैसे रोकेगा उसे
कल तक जो किनारों की बंदिश में था
आज बेह के समंदर हो रहा है

देख इंसान रंग कैसे बदलता है
कल मुफ्ल्सी से जिसकी डर था
शोहरत पर उसकी आज फक्र हो रहा है

कही ज़माना फिर देख न ले
इसलिए तरतीब ज़रूरी है     (तरतीब = Arrangement)
दिन के उजाले में एहतियात
रातों में बे-परवाह सफ़र हो रहा है
---------------------------------------------
हरदीप

Thursday, July 11, 2013

उम्मीद

मुझे जितना मिटाओंगे
मैं उतना याद आऊंगा 
तुम मानो या न मानो .....
मैं एक दिन लौटके आऊंगा

जवानी साथ छोड़ जायेगी
ये कहानी भी खत्म हो जायेगी
तब मैं नई शुरुआत बन जाऊँगा

जब जिस्म जलने लगे
और सांस पिघलने लगे
मैं शीतल छाओं बन जाऊंगा

दुनिया गर डराने लगे
जब ऐतबार डग-मगाने लगे
मैं उम्मीद बन छाऊंगा

समझ जाना के वो प्यार था
और कुछ नहीं.......
तुझे आस होगी किसी और की 
.........और मैं नज़र आऊंगा
-------------------------------------
हरदीप

Wednesday, July 10, 2013

અનંત

તારા  વગર જીવવું વિચારી ના સકું
તું મુજથી અલગ થાય વિચારી ના સકું
તોફાનો માં સળગતો રાખ્યો છે 'દીપ' ને
એક ફૂંક થી ઓલ્વાહી જાયે
...............વિચારી ના સકું

પ્રારંબ થી અંત સુધિ નો સાથ 
અને જીવન મરણ ની વાતો 
બે પગલે સાથ છુટી જાયે
...............વિચારી ના સકું

અસીમ રાહ જોઈ છે તારી
સમય છે સાક્ષી,
અંતિમ સ્વાસ એ તું આવે
ને પ્રાણ છુટી જાયે
...............વિચારી ના સકું

સમય ફરી બદલાશે
રંજ કોઈ દિવસ તો થાશે
તું શોધે મને, ને હું ખોવાઈ જાઉં
...............વિચારી ના સકું

'દીપ' છું, અંધકાર દૂર કરીશ
સૂર્ય ની જેમ સળગીસ,
પણ કોઈ ખૂણો રહી જાયે
...............વિચારી ના સકું
--------------------------------------
હરદીપ

Tuesday, July 9, 2013

कहानी

कभी मन ही मन मुस्कुराता हूँ
पुरानी यादों में खो जाता हूँ

तेज़ कदमों से सफ़र तो किया
पर मंजिल से लौट आता हूँ

कहीं इमानदारी की मिसाल
तो कहीं चोर बन जाता हूँ

कभी तूफानों से टकरा गया
कभी झोंके से बिखर जाता हूँ

अब भरोसा नहीं रहा दुनिया पर
अपने हाथों अपनी कब्र सजाता हूँ

क्या कहूँ कुछ नया, बस
वही कहानी दोहराता हूँ
------------------------------------------------------
हरदीप

Monday, July 8, 2013

गुमनाम

हकीकत जब सताने लगे
कहानी कोई याद आने लगे

नज़रे मोड़ से वापस आने लगे
हर राहगीर जब डराने लगे

कदम कहीं और मन कहीं और जाने लगे
जब दिल शतरंज बिछाने लगे

अपने होने पर सवाल आने लगे
जब मन डग-मगाने लगे

आईने में  सर झुक जाने लगे
शर्म से आँखों में पानी आने लगे

वो मंज़र नजरों में छाने लगे
वो गलियाँ याद आने लगे

जब याद किसकी तड़पाने लगे
और अपनी बेवफाई याद आने लगे

........तब समझना तुझे ऐहसास हो गया
        तू 'जीत' के भी हार गई
        में 'हार' के भी जीत गया
        तू अपनों में न जी पाई
        में गैरों में जी गया
-------------------------------------------
हरदीप