Monday, December 2, 2013

फिर वहीं कहानी....

सदियों बाद लौटा उम्मीद में, पर ..
दुनिया वैसी मिली, जैसी छोड़ आया था

लोगों ने रास्ते बना दिए 'दीप'
वहीं, जहाँ उम्मीद का पेड़ लगाया था

गर्दिश में एक-एक कर के सभी चल दिये
जो आखिर में साथ छोड़ गया, वो मेरा साया था

बदलती हवायें उड़ा ले गई तिनको को
चिड़याने बड़ी मुस्किल से घरोंदा बनाया था

किसे पता था बिच समुन्दर साथ छोड़ देगा वो
में उसके भरोसे, किनारे अपनी नाव छोड़ आया था

.............और क्या सबूत दू अपनी बंदगी का..
में कब्र से बाहर, दुआ में अपने दो हाथ छोड़ आया था
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हरदीप