Sunday, August 18, 2013

मौसम

यूँ मौसम काले बादलों से घिर आया
शायद मेरा ख़त उसने फिर जलाया

बिन मौसम बरसी बारिशे फिर
फिर कोई आंसू आखों से छलक आया

और क्या बया करू राज़-ऐ-दास्ताँ
.............एक खुली किताब हूँ
जिसका मन हुआ, पढ़ आया


फूक़ दो मुझे और खाख़ हो जाने दो
मैं हवाओ से उसका पता पूछ आया

ज़िन्दगी साथ जिया ही कब उसके
लम्हों में जिया, लम्हों में उससे छोड़ आया

कब माँगा था उसने कुछ मुझ से
मैं सितारों की ख्वाहिश में, चाँद छोड़ आया



बात सिर्फ इतनी सी, और कुछ नहीं
गुजरते वक़्त से हमने क्या सिखा
गुजरते वक़्त ने हमे क्या सिखाया
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 हरदीप


Friday, August 16, 2013

छल्ला

छल्ला केन्दा ने सच्चियाँ
के अजे उमरा,.. ने कच्चियाँ
के सुन,... गाल कर अछियाँ
के गाल सुन छ्लेया

छल्ला तू रेंदा वे कला
के उस्दियाँ लखा... गला
जिथे  वैखा सिर्फ ..अल्लाह 
के गाल सुन छ्लेया

के छल्ला बेठे छावे
के सुख-दुःख आवे ते जावे
किस्मत चे लिख्या तो पावे
के गाल सुन छ्लेया

के छल्ला वेखे चूड़ियां
सिर्फ नसीबा दी कुड़ियां
के जीवे रब तो मिलयां
के गाल सुन छ्लेया

के छल्ला दुनियाँ बेगानी
कौन गैर ते कौन दिल दा जानी
सोचा ते अखां चे सिर्फ पानी
के गाल सुन छ्लेया
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हरदीप

Thursday, August 15, 2013

आज़ाद

उन लाखों, करोड़ो की आस बन जाऊं
दिल करता है 'सुभाष' बन जाऊं

फिर गूंजे नारा आज़ादी का 
मैं तान मुछे 'आज़ाद' बन जाऊं

ये देश फिर एक बार बलिदान मांगता है
मैं 'राजगुरु' 'सुखदेव' 'भगत' बन जाऊं

उठा समशीर मर्दानी बन जाऊं
में जंग-ऐ-मैदान में 'झाँसी वाली रानी' बन जाऊं
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'सलाम'
हरदीप

Tuesday, August 13, 2013

समा

ऐ मेरे दिल इतनी रफ़्तार किसलिए
तेरे ऐहसास और है, उसके हालत और है

हर लम्हा एक सा नहीं होता....
वो समा और था, ये सिलसिला और है

आइना बया करता है हक़ीकत हमेशा
वो रुबरुह कोई और था, ये समक्ष कोई और है

ज़रा साँसों से कदम मिला ऐ दिल ..
वो तड़पना और था, ये धड़कना और है

कैसे कहूँ के वक़्त कितना बदल गया
वो ज़माना और था, ये ज़माना और है 
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हरदीप

Sunday, August 11, 2013

महान

मुझे  समज नहीं आता...
ये देश महान कैसे कहलाता है

सरहद पर जवान शहीद हो जाता है
नेता सियासत से बाज़ नहीं आता है
फिर ये देश महान कैसे कहलाता है

जहा शेर बंद है पिंजरों मैं
और कुत्ता सडको पर नज़र आता है 
फिर ये देश महान कैसे कहलाता है

ईमान बेच के दो वक़्त की रोटी कमाता है
इंसान जीने के लिए रोज़ मर जाता है
फिर ये देश महान कैसे कहलाता है

भूख  मरी से नहीं मरता इंसान
राशन की कतार में मर जाता है
फिर ये देश महान कैसे कहलाता है

बेटो को सर आँखों पर .....
बेटियों को जिंदा दफना दिया जाता है
फिर ये देश महान कैसे कहलाता है

 वाह रे इंसान, एक नई सुबह की चाह में
उम्मीद की चादर तान के सो जाता है
शायद ....
शायद इसीलिए, ये देश महान कहलाता है
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'सलाम'
हरदीप

Thursday, August 8, 2013

देश

I am sure you must have heard about our soldiers getting killed on border and people reacting angrily back home, i feel equally angry to see our so called rulers unable to protect them and not taking any firm step (I am not in favor of war), so here's my way of taking out the anger.

This is about a soldier who's writing to a politician about how angry he is looking at current situation.


मेरी कुर्बानी ज़ाया मत कर
यूं दुश्मनों को गले लगाया मत कर

गर मेरे साथ खड़ा रेह सके तो आ
गर दुश्मन को ललकार सके तो आ
वरना यूं सरहद पर आया मत कर

हमने खाई है सिने पर गोलियां
हमने देखि है खून की होलियां
लोगो को....  तू दास्ताँ सुनाया मत कर

गर खून में रवानी हो तो जा
गर इरादे तूफानी हो तो जा
वरना....
सहिदों की मज़ार पर जाया मत कर

माँ ने कई लाल वार दिए
बेटो ने कई साल वार दिए
तू.. आज.., कल.., परसों.. गिनाया मत कर

मेरे बाद कुछ नहीं बचा उस घर में
तू .... झोली फेलाके जाया मत कर
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'सलाम '
हरदीप

Saturday, August 3, 2013

यार

This isn't finished yet, but just wanted to share few quick thoughts, the whole mind set when writing is that you love someone so much that he/she becomes god for you. so this isn't about finding difference between the almighty and your love, but about finding similarities between your love and almighty.  I'll certainly add few more lines later on.

.....And more importantly it's in punjabi with hind char/words used to express the feeling.

तेनु मिलन दा यार एक ज़रीया 
बड़ा लब्या पर यार ना मिलिया  ( लब्या = to search)

मेरे यार दी अखां जीवे वेंदा पानी   (वेंदा पानी = flowing water)
जे उतर जावा तो सब दरिया- दरिया

फ़क़ीर हो जावा मैं उसदे दर दा 
जद वि हाथ चुक दुआं मंगिया


'दीप' की केन्दा सुन 'जीत'  ( केन्दा = listen what i am saying)
वेख नेहरे चे किवे दिवा बल्या  ( see how lamp shines in darkness)
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हरदीप