यूँ मौसम काले बादलों से घिर आया
शायद मेरा ख़त उसने फिर जलाया
बिन मौसम बरसी बारिशे फिर
फिर कोई आंसू आखों से छलक आया
और क्या बया करू राज़-ऐ-दास्ताँ
.............एक खुली किताब हूँ
जिसका मन हुआ, पढ़ आया
फूक़ दो मुझे और खाख़ हो जाने दो
मैं हवाओ से उसका पता पूछ आया
ज़िन्दगी साथ जिया ही कब उसके
लम्हों में जिया, लम्हों में उससे छोड़ आया
कब माँगा था उसने कुछ मुझ से
मैं सितारों की ख्वाहिश में, चाँद छोड़ आया
बात सिर्फ इतनी सी, और कुछ नहीं
गुजरते वक़्त से हमने क्या सिखा
गुजरते वक़्त ने हमे क्या सिखाया
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हरदीप
शायद मेरा ख़त उसने फिर जलाया
बिन मौसम बरसी बारिशे फिर
फिर कोई आंसू आखों से छलक आया
और क्या बया करू राज़-ऐ-दास्ताँ
.............एक खुली किताब हूँ
जिसका मन हुआ, पढ़ आया
फूक़ दो मुझे और खाख़ हो जाने दो
मैं हवाओ से उसका पता पूछ आया
ज़िन्दगी साथ जिया ही कब उसके
लम्हों में जिया, लम्हों में उससे छोड़ आया
कब माँगा था उसने कुछ मुझ से
मैं सितारों की ख्वाहिश में, चाँद छोड़ आया
बात सिर्फ इतनी सी, और कुछ नहीं
गुजरते वक़्त से हमने क्या सिखा
गुजरते वक़्त ने हमे क्या सिखाया
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हरदीप