Sunday, June 9, 2013

बीते पल

जब से हमने जीने की कसम खाई है
हर पल सांसोने कीमत चुकाई है

यह उठता धुआं आँखों में चुभता है
शायद आग किसी अपने ने लगाई है

किसका गुनाह किस पर इलज़ाम
अपने हाथों से अपनी किस्मत मिटाई है

गर मर गया, तो उसका लिखा गलत हो जायेगा
इसलिए अपनी ही लाश कंधो पर उठाई है
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हरदीप