Wednesday, November 19, 2014

आज़माइश

बदलते ज़माने में दर्द फिर आज़माने निकले
वक़्त बदल गया लोग वहीं पुराने निकले

बड़ा गेहरा रिश्ता है दोनों का...
पुराने दर्द के साथ, अश्क़ भी पुराने निकले....

बात कुछ लम्हों की, हमनें गुज़ारिश की मिलने की
उनके होठों से कई हज़ार बहाने निकले

आज़माइश उसकी फितरत और मेरे इरादों की है
रेत में घर बनाकर, लहरों से टकराने निकले

तजुर्बा ज़िन्दगी का कुछ कम था....
ज़रुरत पर कई लोग बेगाने निकले ..........

काफ़िर है सारा ज़माना ....      (काफ़िर real meaning = नास्तिक)
वाइज़ फिर भी आयात पढ़ाने निकले.....
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हरदीप

Friday, February 7, 2014

कहानी-३

खुसियों कि जुबां से दुःखों कि कहानी
वोही तू, वोही मैं ... और फिर वोही कहानी

हज़ारों खवाहिशे, हज़ारों हसरते
एक पागल मन, और छोटी सी ज़िंदगानी

उमड़ता समुन्दर, घुमड़ते बादल
और लेहरों मैं फसी नाव पुरानी

नया क्या है, कुछ भी तो नहीं
वोही तस्वीर, वोही याद पुरानी
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हरदीप

Friday, January 3, 2014

इश्क़

ये क्या कत्ले-आम मचा रखा है
क्यू हुस्न को परदे में  छुपा रखा है

हटा दे पर्दा, के रोशन हो जाए जहाँ
क्यू महताब को बादलों में छुपा रखा है

ज़रा-ज़रा बेताब है बूँद के लिए
क्यू आँखों में सैलाब दबा रखा है

इन्तेहाँ मोहब्बत कि, केह दिया ख़ुदा तुझे
.......और तेरे सजदे में सर झुका रखा है

दुनिया ने कभी अहमियत नहीं दी
..अब इश्क़ ने मशहूर बना रखा है

यूँ .....लोगों कि नज़रो से बचा रखा है,  
रात को आसमान पर चाँद सजा रखा है
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हरदीप