Tuesday, February 23, 2016

ख़्वाब

तुम्हे ख्वाबों में देखने की आदत सी हो गई
.............की बेवक़्त भी सो जाते है हम

पत्थरों के निशाने पर है आज कल
........चलो किसी काम तो आते है हम

ए मेरी उम्मीद, बस छोड़ मत जाना 
.....इक तेरे भरोसे जिए जाते है हम

उछलती लहरों में वो दम कहा ...
.....गेहरी साँसों में डूब जाते है हम 


जी ली अपनी ज़िन्दगी हमने ......
अलविदा ...... सफर पर जाते है हम
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हरदीप

बेटियां

बेटियों से घर कुछ ऐसा  बन जाता है
दरवाज़ा खोलते ही..... स्वर्ग नज़र आता है

दो खूबसूरत वजह है जीने की ...
वरना आदमी जी तो यूँ भी जाता है ...

बेटों पर मरती है ..ये दुनियाँ
इसे क्या पता .... बेटियों संग जिया कैसे जाता है

किस्से कहानियाँ बहोत है इनकी ...
मेरा मन मुस्कुराहट से बहल जाता है ...

अपने घर का आसमान बड़ा खूबसूरत है ...
पर सितारों बिना चाँद में मजा नहीं आता है ...

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हरदीप
Proud Father.

Sunday, May 10, 2015

माँ

......................ऐसी होती है माँ ....
लकीरों वाले हाथों से, चुपके से सर बहलाती है
आँखे बंद है, औरो के लिए सोया हूँ, पर समज जाती माँ

उम्मीदो की थाली, ख्वाहिशों का प्याला
मुस्कुराते चेहरे से, प्यार परोसती माँ
......................ऐसी होती है माँ ....

मायूसी  और नाकामयाबी की रातों में
फ़िक्र की चादर ओढ़ के, खुली छत पर सोता हूँ
चुपके से, धीरे से .... कभी लाखों सितारे
और कभी .... खुशियों का चाँद जैसी माँ 
......................ऐसी होती है माँ ....

ढलती रात, चढ़ता सूरज ...
आँगन में खिलते फूलों सी माँ ..
......................ऐसी होती है माँ ....

हज़ारों दर्द है सीने में ... पर
मुस्किलो में चटानो सी माँ ...
......................ऐसी होती है माँ ....

गीता के शब्दों में, कुरान के पन्नो में
मंदिर, मस्जिद, काबा, काशी जैसी माँ ...
......................ऐसी होती है माँ ....

Wednesday, November 19, 2014

आज़माइश

बदलते ज़माने में दर्द फिर आज़माने निकले
वक़्त बदल गया लोग वहीं पुराने निकले

बड़ा गेहरा रिश्ता है दोनों का...
पुराने दर्द के साथ, अश्क़ भी पुराने निकले....

बात कुछ लम्हों की, हमनें गुज़ारिश की मिलने की
उनके होठों से कई हज़ार बहाने निकले

आज़माइश उसकी फितरत और मेरे इरादों की है
रेत में घर बनाकर, लहरों से टकराने निकले

तजुर्बा ज़िन्दगी का कुछ कम था....
ज़रुरत पर कई लोग बेगाने निकले ..........

काफ़िर है सारा ज़माना ....      (काफ़िर real meaning = नास्तिक)
वाइज़ फिर भी आयात पढ़ाने निकले.....
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हरदीप

Friday, February 7, 2014

कहानी-३

खुसियों कि जुबां से दुःखों कि कहानी
वोही तू, वोही मैं ... और फिर वोही कहानी

हज़ारों खवाहिशे, हज़ारों हसरते
एक पागल मन, और छोटी सी ज़िंदगानी

उमड़ता समुन्दर, घुमड़ते बादल
और लेहरों मैं फसी नाव पुरानी

नया क्या है, कुछ भी तो नहीं
वोही तस्वीर, वोही याद पुरानी
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हरदीप

Friday, January 3, 2014

इश्क़

ये क्या कत्ले-आम मचा रखा है
क्यू हुस्न को परदे में  छुपा रखा है

हटा दे पर्दा, के रोशन हो जाए जहाँ
क्यू महताब को बादलों में छुपा रखा है

ज़रा-ज़रा बेताब है बूँद के लिए
क्यू आँखों में सैलाब दबा रखा है

इन्तेहाँ मोहब्बत कि, केह दिया ख़ुदा तुझे
.......और तेरे सजदे में सर झुका रखा है

दुनिया ने कभी अहमियत नहीं दी
..अब इश्क़ ने मशहूर बना रखा है

यूँ .....लोगों कि नज़रो से बचा रखा है,  
रात को आसमान पर चाँद सजा रखा है
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हरदीप

Monday, December 2, 2013

फिर वहीं कहानी....

सदियों बाद लौटा उम्मीद में, पर ..
दुनिया वैसी मिली, जैसी छोड़ आया था

लोगों ने रास्ते बना दिए 'दीप'
वहीं, जहाँ उम्मीद का पेड़ लगाया था

गर्दिश में एक-एक कर के सभी चल दिये
जो आखिर में साथ छोड़ गया, वो मेरा साया था

बदलती हवायें उड़ा ले गई तिनको को
चिड़याने बड़ी मुस्किल से घरोंदा बनाया था

किसे पता था बिच समुन्दर साथ छोड़ देगा वो
में उसके भरोसे, किनारे अपनी नाव छोड़ आया था

.............और क्या सबूत दू अपनी बंदगी का..
में कब्र से बाहर, दुआ में अपने दो हाथ छोड़ आया था
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हरदीप