Saturday, March 23, 2013

सच्चाई

जिसे ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया
वो मुझे मंजिल तक पहोचायेगा
कोई और नहीं, मेरा खून मुझे आग लगाएगा

क्या गुमान तुझे दौलत का
सब यहीं रह जाएगा
मिट्टी से बना तू, मिट्टी में मिल जाएगा

होश में तो भावनाओं पर काबू कर लिया तुने
क्या करेगा, जब कोई सपनों में रुलाएगा

बेवजह लोग चिंता करते है कल की
कल न आया है और न आएगा
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हरदीप

मातृभूमि

उस दौर की यह कहानी
मातृभूमि के लिए खून बहता पानी

बेखौफ वीर मौत से टकरा गए 
आज़ादी के लिए न्योछावर की जवानी
...मातृभूमि के लिए खून बहता पानी

किस्से, कहानियों में अमर हो गए
सुनहरी दास्तान, हर एक की जुबानी
...मातृभूमि के लिए खून बहता पानी

इंक़लाब जिंदाबाद के हर तरफ नारे
क्या अपने, क्या गैर साथ चल दिए सारे
एक नया जोश, खून में नई रवानी
...मातृभूमि के लिए खून बहता पानी

गलत है वो लोग जो बात करते है होश की
बदलाव के लिए ज़रुरत है जोश की
शायद फिर दोहराएगा कोई वो कहानी
...मातृभूमि के लिए खून बहता पानी
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इंक़लाब जिंदाबाद

हरदीप

Wednesday, March 20, 2013

अकेला

पुराने रिश्ते सारे तोड़ आया
वो रास्ते गलिया छोड़ आया

मेरे कदमो के निशां होंगे वही
जहाँ में अपनी मंजिल छोड़ आया

ख्वाहिश ऐसी समुंदर की
मैं बेहता पानी छोड़ आया

जहाँ विजेता को पूजते है लोग
मैं ऐसी दौड़ छोड़ आया

सूरज इठलाता है मुझ पर अब
मैं अपने आंगन की शीतल छाव छोड़ आया
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हरदीप

Monday, March 18, 2013

बाज़ार

अरमानो की दूकान में, प्यार के खिलौने 
रंगीन कागजों में सजाए सपने सलोंने
....चलो आज कुछ खरीदें बाज़ार से

कुछ खनक ते सिक्के लाया हूं
उम्मीद से वादा करके आया हूं
खाली हाथ न लौटूंगा बाज़ार से
....चलो आज कुछ खरीदें बाज़ार से

रंग बिखेरती कांच की चूड़ियाँ,
प्यार से मुस्कुराती, मिट्टी की गुडिया
खरीद ले किसी भी दूकान से
....चलो आज कुछ खरीदें बाज़ार से

अच्छे-बुरे, हर किस्म के लोग होंगे
मुखोटों के पीछे छुपे लोग होंगे
तू परख ना ध्यान से
....चलो आज कुछ खरीदें बाज़ार से

खुशियाँ कहा मिलती हैं बता दे
एक बार मुझे भी पता दे
 खरीदूंगा मैं आराम से
....चलो आज कुछ खरीदें बाज़ार से
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हरदीप

Saturday, March 16, 2013

अधुरा

लम्बी जिंदगानी, प्यार अधुरा
ख़तम कहानी, अरमान अधुरा

एक तस्वीर, रंग अधुरा
एक ख्वाब, सच अधुरा 

कस्मे वादे, साथ अधुरा
वो इरादे , प्यार अधुरा

टूटे रिश्ते, सपना अधुरा
छुटे अपने, में अधुरा
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हरदीप

Friday, March 15, 2013

आदमी

क्या बनाया तुने ये आदमी
गैर पर भरोसा नहीं, और
अपनों से चोट खाया आदमी

क्या तेरा, क्या मेरा, क्या पाया तुने आदमी
खाली हाथ आया था, खाली हाथ गया आदमी

दौड़ आगे बढने की, दौड़ कुछ पाने की
चंद खुशियों के लिये, पल पल बिकता आदमी

पत्थर के सीने में, आंसू से भरा आदमी
कभी कभी मोम सा पिघलता आदमी

जब तक सांसे, तब तक जिंदा आदमी
फिर आदमी ने जलाया आदमी 
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हरदीप

Saturday, March 2, 2013

तलाश

जिसे सदियों से मै खोज रहा था
उसे आज करीब से गुजरते देखा

ख्वाहिश सिर्फ सच की थी
हमने हर सवाल पर, आईने को मुकरते देखा

बागबान, बेवजह फिक्र मत कर चंद फूलों की
हमने तो पूरा गुलिस्तां उजड़ते देखा

ये क्या करामात है कुदरत की
जिंदा लोग डूब गये और लाशों को तैरते देखा

मंजिल न मिलेगी कभी, ये पता चल गया
जब हमने रास्तो को बदलते देखा

बिछड़ना क्या होता है उस परवाने से पूछो
जिसने शमा को पिघलते देखा
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हरदीप