न जाने ये
कैसा दौर है,
कही मुझमे कोई
और है
खयालो में बेचैनी, आंखे उदास, होंठों
पर सवाल और
एक हल्के से
सन्नाटे का शोर
है
न जाने यह
कैसा दौर है
....
न जाने ये
कैसे हो गया,
में मुझमे
कही खो गया
एक वीरान मैदान में,
लम्बी राहे चारो
और है
न जाने यह
कैसा दौर
यु नज़रें चुराता
तो न था,
यु अपने-आप
को लोंगो से
छुपाता तो न
था
फिर न जाने
आया कहा से मुझमे यह चोर
है
न जाने यह
कैसा दौर है
सिर्फ एक बूँद
के लिए तडपा जिंदगी भर ऐ
'दीप' और मर
गया
अब मेरी मैयत
पर छाई घटा
घनघोर है
न जाने यह
कैसा दौर है
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हरदीप
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