Saturday, February 16, 2013

दौर



जाने ये कैसा दौर है, कही मुझमे कोई और है
खयालो में बेचैनी, आंखे उदास, होंठों पर सवाल और एक हल्के से सन्नाटे का शोर है
जाने यह कैसा दौर है ....

जाने ये कैसे हो गया, में मुझमे कही खो गया
एक वीरान मैदान में, लम्बी राहे चारो और है
जाने यह कैसा दौर

यु नज़रें चुराता तो था,
यु अपने-आप को लोंगो से छुपाता तो था
फिर जाने आया कहा से मुझमे यह चोर है
जाने यह कैसा दौर है

सिर्फ एक बूँद के लिए तडपा जिंदगी भर 'दीप' और मर गया
अब मेरी मैयत पर छाई घटा घनघोर है
जाने यह कैसा दौर है
-----------------------------------------------
हरदीप 

No comments:

Post a Comment